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अंधेरा

Posted on the 10 September 2015 by Heartbaredtoyou121 @naughtytushki

अंधेरा

अंधेरा घना था
दूर दूर तक रौशनी झक मार कर भी नज़र नही आती थी
अजीब वीरान जगह थी
पहली दफह पहुँचा था
बुलावा ही कुछ ऐसा आया था
ना करना भी नामुमकिन बराबर था
एक अधूरी कहाँनी थी
जो लिखनी भूल गए थे
ज़हन में कुछ तस्वीरें उमड़ रही थीं
बन बिगड़ रही थीं
एक चेहरा सा बनता दिखा
एक अक्स आंखो के सामने आ खड़ा हुआ
अंधेरे में चांदनी सा चमकता मस्तक
हया से तिरछा रोशनी से दूर भागती एक मुस्कान
मानो मन में बसने के लिए ही बनी हो जैसे
शोखी थी उसके बांकपन् में भी
हर कोई खिचा चला आता था
हम भी तो उनके दीदार ही को आये थे
एक दफह फिर बेआबरू होने
बुला भेजा था
उन्हे ना कहना वश में था ही कब अपने
कल भी यही हाल था
और आज भी
कौन कहता है के वक़्त पे इंसान बदल जाता है
ना हम बदले
ना वो
बस हालात का कसूर है
वरना कहानी अपनी भी थी
अफसानों से भरी हुई।


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